Ukraine crisis:यूक्रेन पर रुस द्वारा आक्रमण के बाद विश्व मानचित्र पर स्थितियां तेजी से बदल रही हैं सबकी निगाह उन देशों पर टिकी है जो अभी तक इस युद्ध को लेकर तटस्थ की भूमिका में हैं यानी ना तो अमेरिका के खेमे में और ना ही रूस के खेमे में.
इन देशों में कुछ हद तक भारत को भी रखा जा सकता है क्योंकि अभी तक भारत ने इस युद्ध(Ukraine War) को लेकर कोई अहम टिप्पणी नहीं की है, जिससे यह संकेत मिल सके कि भारत अमेरिका के साथ है!!
यहाँ अमेरिका के साथ होने पर चर्चा इसलिए की जा रही है क्योंकि फिर से ऐसा लग रहा है जैसे विश्व को दो ध्रुवों में बांटने की कोशिश हो रही है या फिर ऐसा ऐसा भी कहा जा सकता है कि विश्व को दो ध्रुवों पर खींचने की कोशिश हो रही है.
द्वितीय विश्व युद्ध(Second World War) के बाद का दौर जिसे शीत युद्ध(Cold War) का दौर भी कहा जाता है. उस समय भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जब NATO का गठन हुआ था. विश्व की दो महा शक्तियों ने विश्व के देशों को अपने अपने खेमे में खींचने का हर संभव प्रयास किया था.
वर्तमान परिस्थितियों पर गौर करें तो यूक्रेन संकट(Ukraine Crisis) को विश्व महा शक्तियों द्वारा अपने वर्चस्व को स्थापित करने के एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है.जो कि चिंता के साथ-साथ चिंतन का भी विषय है
आज जब अमेरिकी राष्ट्रपति Joe Biden से एक पत्रकार ने यह सवाल किया कि भारत अमेरिका का एक बड़ा रक्षा भागीदार है तो क्या भारत यूक्रेन संकट(Ukraine Crisis) पर अमेरिका के साथ है?
इस सवाल के जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति ने बड़ा ही डिप्लोमेटिक जवाब दिया. उन्होंने कहा हम अभी भारत से इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं.
#WATCH हम भारत के साथ परामर्श कर रहे हैं, हमने इसे पूरी तरह से हल नहीं किया है: यूक्रेन-रूस संकट पर क्या भारत यूनाइटेड स्टेट के साथ है? इसके जवाब में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन #Ukraine pic.twitter.com/1QXyBGX9Xa
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 24, 2022
यहां जो सबसे बड़ी बात है वो यह है नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने क्या जवाब दिया बल्कि सवाल यह है कि उनसे जो सवाल पूछा गया उस सवाल में भारत को लेकर क्या आकलन किया गया.
इस सवाल पर भी हजारों सवाल उठ सकते हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या वैश्विक मंच पर भारत की पहचान सिर्फ इसलिए है कि वह अमेरिका से बड़ी मात्रा में हथियार खरीद करता है?
चाहे जो भी हो पत्रकार का सवाल कुछ भी हो अमेरिकी राष्ट्रपति का जवाब कुछ भी हो लेकिन भारत से यही उम्मीद है कि वह अपने गुट निरपेक्ष छवि को बरकरार रखेगा और एक बार फिर से विश्व को यह संदेश देने में कामयाब होगा कि खेमे बाजी से विश्व का कल्याण नहीं हो सकता.