किसानों का आंदोलन अनवरत जारी है मालूम हो कि यह आंदोलन जिन तीन कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस लेने के लिए किया जा रहा है उन्हें अध्यादेश द्वारा लाया गया था और फिर संसद के मॉनसून सत्र में दोनों सदनों द्वारा पास कराया गया.इन सब के बीच एक बार फिर से अध्यादेश पर चर्चा छिड़ गई है इसलिए अध्यादेश के संवैधानिक पहलुओं को भी जानना जरूरी है.
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश के लिए लोकतंत्र की घोषणा करना और उसे लोकतांत्रिक मूल्यों में पिरोए रखना बहुत ही कठिन कार्य था. इसके लिए एक लंबी और कठिन प्रक्रिया से गुजरने के बाद 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ और अधिकतर प्रावधानों के साथ लागू भी हो गया लेकिन 26 जनवरी 1950 को इसे पूर्ण रूप से लागू किया गया. देश संविधान से चलता है और वही संविधान अब लागू हो चुका था, संविधान बनने से लेकर आज तक कई कानूनों का निर्माण और संशोधन हुआ.
कानून बनाने का काम संसद करती है और राज्य स्तर पर राज्य विधानमंडल.भारतीय संसद में दो सदन हैं लोकसभा (निम्न सदन) और राज्यसभा (उच्च सदन). किसी भी कानून को लागू कराने के लिए कानून के मसौदे को जिसे की विधेयक कहते हैं उसे दोनों सदनों द्वारा पारित करवाना आवश्यक होता है. लेकिन कभी-कभी विशेष परिस्थिति में जब दोनों सदन या फिर दोनों में से कोई एक सदन सत्र में नहीं हो यानी चालू नहीं हो और किसी महत्वपूर्ण विषय पर कानून बनाना आवश्यक हो तो राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सिफारिश पर भारतीय संविधान के Article 123 के तहत कानून को लागू कराने के लिए अध्यादेश जारी करते हैं. अध्यादेश द्वारा लागू कानून ठीक वैसा ही होता है जैसा कि संसद द्वारा बनाया गया कानून. लेकिन इसकी समय सीमा तय होती है जो कि अधिकतम 6 महीने की होती है. 6 महीने के भीतर इस कानून को संसद के दोनों सदनों का अनुमोदन आवश्यक होता है अगर ऐसा नहीं होता है तो यह कानून निरस्त हो जाता है. यहां एक बात याद रखने योग्य है कि अध्यादेश द्वारा किसी TAX को लागू या संशोधित भी किया जा सकता है,अध्यादेश द्वारा किसी दूसरे अध्यादेश को निरस्त भी किया जा सकता है,इन सब के बावजूद अध्यादेश द्वारा संविधान संशोधन नहीं किया जा सकता यानी संविधान संशोधन के लिए अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता,इसे अध्यादेश की लक्ष्मण रेखा भी कह सकते हैं. यहां एक बात जो बहुत ही महत्वपूर्ण है वह यह है कि अध्यादेश निरस्त होने की स्थिति में भी उसके अंतर्गत पूर्व में किए गए जितने भी कार्य हैं वह निरस्त नहीं होते. अब बात आती है क्या अध्यादेश की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है इसका अर्थ है क्या अध्यादेश को COURT में चुनौती दी जा सकती है या नहीं, संविधान के 38 में संशोधन में इसे न्यायिक समीक्षा से परे रखा गया, राष्ट्रपति के निर्णय को सर्वोपरि माना गया था. लेकिन 44 में संविधान संशोधन द्वारा इसे न्यायिक दायरे में ले आया गया. अगर लोकतांत्रिक देशों की बात करें तो अधिकांश देशों में अध्यादेश जारी करने का प्रावधान नहीं है, अमेरिका (USA) और ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देशों में भी अध्यादेश(ORDINANCE) जारी करने का प्रावधान नहीं है. इन सबके बीच एक गंभीर सवाल यह उठता है कि क्या अध्यादेश जारी करना एक निरंकुश व्यवस्था को स्थापित करना तो नहीं है, जब इस संबंध में संविधान निर्माता बाबा भीमराव अंबेडकर(B.R.AMBEDKAR)से संविधान सभा (Constitutional assembly) में पूछा गया तो उनका जवाब था…..
अध्यादेश जारी करने की शक्ति राष्ट्रपति को उस परिस्थिति से निबटने में योग्य बनाती है जो आकास्मिक व अचानक उत्पन्न होती है जब संसद के सत्र कार्यरत नहीं होते हैं (भीम राव अंबेडकर)
अध्यादेश एक विशेष स्थिति में विशेष मुद्दे के लिए ही प्रयोग किया जाना मर्यादित माना जाता है, इसका संकेत हमें लोकसभा के एक नियम से भी मिलता है जिसमें कहा गया है..
जब कोई विधेयक अध्यादेश का स्थान लेने के लिए सदन में प्रस्तुत किया जाता है उस समय अध्यादेश जारी करने के कारण और परिस्थितियों को भी सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
भारत के यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई ने कहा था…
सरकारें आती हैं, सरकारें जाती हैं लेकिन देश बचना चाहिए….