COVID-19 की प्रथम लहर में शुतुरमुर्ग समान आचरण ने आज भारत को परेशानी के ऐसे कुचक्र में धकेल दिया है जिससे निकलने की हर मुमकिन कोशिश नाकाम होती नजर आ रही है.
वर्तमान में भले ही शीर्ष नेतृत्व इस बात से बेखबर हो या फिर सच्चाई को जानते हुए भी अति आत्ममुग्धता में इसे स्वीकार नहीं कर रहे हों लेकिन भारत की स्थिति चिंताजनक नहीं बल्कि अति चिंताजनक की श्रेणी में पहुंच गई है. सरकारें चाहे वो राज्य सरकार हों या केंद्र सरकार विपत्ति की इस घड़ी में भी अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पा रही है जो कि चिंता का विषय है.
कश्मीर से कन्याकुमारी तक गुजरात से उत्तर-पूर्व तक बस एक ही चीज में समानता देखी जा सकती है और वह है अव्यवस्था. उत्तर प्रदेश (UP) जैसे घनी आबादी वाले राज्य में भी ऑक्सीजन, दवाई और बेड के अभाव में सैकड़ों लोग रोज जान गंवा रहे हैं. देश की राजधानी दिल्ली की भी हालत दयनीय बनी हुई है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार,छत्तीसगढ़, राजस्थान अब कोई भी राज्य अछूता नहीं है जिसके बारे में यह कहा जा सके कि वहां सब कुछ सही है.
लेकिन कुछ राज्य ऐसे हैं जो कि यह दावा कर रहे हैं कि उनके यहां खासकर ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है. इसका एक उदाहरण केरल है जहां बीमारी की प्रथम लहर के दौरान ही टास्क फोर्स का गठन किया गया और ऑक्सीजन की कमी पर ध्यान दिया गया. अगर केरल सरकार की माने तो राज्य में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है. लेकिन इसमें भी एक पेंच है केरल सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक हजार म मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की है यहां ये बात समझ में नहीं आ रही है एक तरफ तो केरल सरकार अपने आप को ऑक्सीजन उत्पादन में आत्मनिर्भर घोषित करती हैं और दूसरी तरफ वो केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगाती है.
अधिकारों को दबाया नहीं जा सकता: SUPREME COURT
अंतरराष्ट्रीय मीडिया, राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया जब राज्य और केंद्र सरकार को आइना दिखाना चाहता है तो इसे प्रोपेगेंडा कह कर या तो टाल दिया जाता है या फिर डराने धमकाने की कोशिश होती है.
बीते दिनों कुछ घटनाएं ऐसी हुई जिसमें लोगों ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर सोशल मीडिया पर गुहार लगाई उल्टे सरकार ने मदद पहुंचाने की जगह पर उन लोगों पर एफ आई आर कर दिया. जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट को भी कहना पड़ा की अगर लोग सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाते हैं तो यह उनका अधिकार है. इन अधिकारों को दबाया नहीं जा सकता उनकी आवाजों को बंद नहीं किया जा सकता और अगर ऐसा होता है तो इसे हम कोर्ट की अवमानना मानेंगे.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना लेकिन जिम्मेदार कौन
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त टाइम मैगजीन ने कवर पेज पर जलती चिताओं की एक फोटो लगाई थी. जो यह बताने के लिए काफी है कि भारत में कोरोना की स्थिति क्या है. लेकिन यह स्थिति क्यों है क्या इसके लिए सिर्फ corona ही जिम्मेदार है??
नीति आयोग, डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी, सरकारी वैज्ञानिकों, सरकारी सलाहकारों और सरकारी एक्सपर्ट्स का भारी-भरकम दल जिस पर जनता की गाढ़ी कमाई लुटाई जाती है, आखिर वो सब क्या कर रहे थे. क्या इन लोगों का सिर्फ इतना ही काम है कि corona की लहरों की गणना करें और धार्मिक, सरकारी और चुनावी आयोजनों को महामारी के दौरान भी मौन स्वीकृति प्रदान करें या फिर जिस तथ्य को एक साधारण व्यक्ति भी बता सकता है कि corona भीड़ से फैलता है उसे दरकिनार करने के लिए अस्वीकार्य तथ्यों को साबित करने में जुट जाएं.
महामारी को लेकर गैर जिम्मेदाराना बयान बाजी
अगर याद हो तो कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान बड़े-बड़े डॉक्टर और वैज्ञानिक इसे सामान्य फ्लू बताने से भी नहीं हिचक रहे थे. कोई भारत के लोगों की IMMUNITY को बेहतर बताकर इस वायरस को कमतर दिखाना चाह रहा था तो कोई इसके लिए गर्मी के मौसम का इंतजार कर रहा था.
प्रथम लहर के दौरान ही स्वास्थ्य मंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा यह कहा जाना कि कोरोना से हमने जंग जीत ली है, इन सब बातों ने आम जनता को लापरवाह बना दिया और रही सही कसर चुनावी रैलियों ने निकाल दी. यहां यह कहना उचित नहीं है कि संपूर्ण भारत में चुनावी रैलियों से ही corona फैला लेकिन चुनावी रैलियों में जुटने वाली भीड़ ने एक संदेश जरूर दिया कि corona शायद एक भ्रम है. क्योंकि चुनावी रैलियों में जिन पर corona प्रोटोकॉल बनाने और लागू करने की जिम्मेदारी थी वही लोग इसकी जमकर अवहेलना कर रहे थे.
नवंबर में ही संसदीय समिति ने ऑक्सीजन की कमी की जानकारी दे दी लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया
नवंबर में ही संसदीय समिति ने भारत में ऑक्सीजन की कमी की जानकारी दे दी थी. जिसका उल्लेख भाजपा के वरिष्ठ सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी हाल के दिनों में किया है. लेकिन ना तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकारों ने इन सब बातों पर गौर किया. डॉक्टरों की कमी तो भारत में शुरू से ही है. भारत में लगभग दस हजार आबादी पर 10 डॉक्टर ही हैं. ये सही है कि डॉक्टरों की इस कमी को एक साल में पूरा किया जाना संभव नहीं था लेकिन बेड और ऑक्सीजन जैसी बुनियादी सुविधाओं पर तो समय रहते ध्यान दिया जा सकता था.
भारत में ऑक्सीजन उत्पादन से ज्यादा मुश्किल है ऑक्सीजन का ट्रांसपोर्टेशन. ऑक्सीजन की ढुलाई के लिए एक सशक्त ढांचा नहीं होने की वजह से भी कई राज्यों को समय पर ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाई और साथ ही केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में सही ताल-मेल की कमी भी साफ देखने को मिली.
सुप्रीम कोर्ट (SC) और हाई कोर्ट (HC) के द्वारा बार-बार की गई सख्त टिप्पणी
खासकर ऑक्सीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने बार-बार केंद्र और राज्य सरकारों को लताड़ा. ऐसी-ऐसी टिप्पणी की गई जिसे शायद ही पहले कभी सुना गया हो. मीडिया ने भी इन टिप्पणियों को छाप कर सरकार को और जनता को जागरूक करने का काम किया.
दिल्ली हाईकोर्ट ने तो अपनी टिप्पणी में यहां तक कह दिया था कि अगर कोई भी ऑक्सीजन सप्लाई में बाधा उत्पन्न करेगा तो हम उसे फांसी पर लटका देंगे. बीते दिन भी दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा अगर दिल्ली को ऑक्सीजन नहीं मिली तो इसे हम न्यायालय की अवमानना मानेंगे और जिम्मेदार अफसरों को इस अवमानना के लिए दोषी.
इस टिप्पणी के कारण ही केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई कि और वहां कहा, इस प्रकार का दबाव होगा तो ऑफिसर कैसे काम करेंगे. तब कल सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि इस प्रकार ऑफिसर को जेल भेज कर ऑक्सीजन तो नहीं मिलेगी. इसलिए सबसे पहले ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित की जाए लेकिन आज फिर से सुप्रीम कोर्ट ने भी बड़े ही तल्ख अंदाज में कहा किसी भी हालत में दिल्ली को 700 मिट्रिक टन आॉक्सीजन की सप्लाई रोज होनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता तो इसे कोर्ट का अवमानना माना जाएगा. मालूम हो कि एक लंबी खींचतान और दिल्ली में कई मरीजों की मौत ऑक्सीजन की कमी से होने के बाद कल से दिल्ली को 700 मिट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई की जा रही है.
टीकाकरण ( vaccination) की घोषणा तो हुई लेकिन पर्याप्त उत्पादन पर ध्यान नहीं दिया गया
भारत में जनवरी 2020 में टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई थी और यह लक्ष्य रखा गया था कि जुलाई 2021 तक लगभग 30 करोड लोगों का टीकाकरण कर लिया जाएगा. लेकिन अब इस लक्ष्य तक पहुंचना मुश्किल नजर आ रहा है. अभी तक लगभग 12.5 करोड लोगों को टीके की पहली डोज मिली है. वहीं मात्र 2.6 करोड लोगों को ही टीके की दोनों डोज मिली है.
बीते 1 मई से तीसरे चरण के टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई जिसमें पहली बार 18 प्लस उम्र के लोगों को शामिल किया गया. कई राज्य टीके की कमी की वजह से 1 मई को इस अभियान को शुरू नहीं कर सके. जिसमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों द्वारा शासित राज्य शामिल हैं. टीकाकरण अभियान में एक और मुश्किल सामने आ रही है, लोगों में टीकाकरण के प्रति विश्वास की कमी देखने को मिल रही है. इसके पीछे सिर्फ लोगों का भ्रम ही काम नहीं कर रहा है बल्कि लोगों में विश्वास जगाने की जमीनी उपायों में भी कमी रही है.
टीका देने के बाद कहीं-कहीं से ऐसी भी खबरें आ रहीं हैं जिसमें लोगों की काउंसलिंग सही से नहीं की जा रही है. कई लोगों से हमने बात की तो हमें पता चला कि टीका लेने के कुछ घंटों के बाद रक्तचाप का बढ़ना हल्का फीवर आना सामान्यतः देखा गया. खासकर उम्रदराज लोगों में ये समस्या ज्यादा थी. लेकिन इसके लिए वो कहां जाए यह वो नहीं जानते थे या फिर जो जानते भी थे तो इतने डरे हुए थे कि वहां जाना नहीं चाहते थे. फिर सोशल मीडिया पर भी टीके को लेकर भ्रामक खबरों का अंबार है जिसे लेकर भी लोगों में बहुत सारी भ्रांतियां घर कर गई हैं.