देश में बढ़ते COVID-19 मामलों और उन मामलों से निपटने के लिए जो तैयारियां की जा रही हैं शायद अब लगता है उस में कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट अब लगातार इन मामलों पर स्वतः संज्ञान ले रहे हैं.
SOCIAL MEDIA पर ना दबायी जाये लोगोंं की फरियाद हम हर आवाज़ को सुनना चाहते हैं : SUPREME COURT
भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर घातक होगी इसको लेकर कई एक्सपर्ट्स पहले से आश्वस्त थे लेकिन यह इतनी घातक होगी इसका अंदाजा शायद ही किसी को था. नए मामले जहां रोज नए रिकॉर्ड बना रहे हैं वही मौतों की संख्या भी हैरान करने वाली है. बीते दिन 24 घंटे में 3 लाख 86 हजार 654 नए corona मरीज पाए गए और 3501 लोगों की मौत हो गई. इस महामारी से हर तरफ कोहराम मचा हुआ है.चाहे वह राज्य सरकार हो या फिर केंद्र सरकार हर रोज हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की फटकार सुननी पड़ रही है. कभी ऑक्सीजन के लिए कभी दवाई के लिए तो कभी बेड और वेंटिलेटर के लिए. कुछ राज्य सरकारें अब डराने धमकाने के लहजे का इस्तेमाल करने लगी हैं. जिससे कि लोग उनकी कमियां उजागर ना करें. जब जनता की आवाजों से सत्ता की चूलें हिलने लगती हैं तो सत्ता अपना स्वरूप बदलने लगती है वह हर उस आवाज़ को चुप्पी की कालकोठरी में बंद कर देना चाहती है जिससे उसे खतरा महसूस होता है. लेकिन तभी संविधान की किताबों के पन्ने फड़फड़ाने लगते हैं अदालतें जागने लगती हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शायद आज भी लोकतंत्र की आत्मा मरी नहीं है.
ताजा घटनाक्रम आज corona संक्रमण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई से संबंधित है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को लताड़ लगाते हुए यह कहा कि किसी भी व्यक्ति की आवाज को दबाया ना जाए. अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपनी बात को रखता है सरकार की कमियों को उजागर करता है तो उसे दबाया ना जाए और अगर इस तरह से हमें कोई सूचना मिलती है कि किसी को किसी भी प्रकार से सोशल मीडिया पर लिखने या कोई पोस्ट डालने के कारण परेशान किया गया है तो इस पर हम स्वतः संज्ञान लेंगे और इसे हम कोर्ट की अवमानना करार देंगे.
आज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से corona महामारी पर नियंत्रण को लेकर सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों पर जवाब मांगा है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा किसे कितनी वैक्सीन मिले यह तय करने का हक निजी कंपनियों को नहीं दिया जाए इस तरह से अव्यवस्था फैल सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर भी केंद्र सरकार से जवाब मांगा है सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि हम ना तो केंद्र सरकार और ना तो दिल्ली सरकार की आलोचना कर रहे हैं और ना ही हम ऐसा करना चाहते हैं. हम लोगों की जिंदगियां बचाना चाहते हैं और अभी अगर हमने हस्तक्षेप नहीं किया तो शायद हम लोगों की मौतों के लिए जिम्मेदार होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी वर्तमान स्वास्थ्य व्यवस्था इस परिस्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह नाकाफी है इस को मजबूत करने की जरूरत है. जहां तक हो सके रिटायर्ड डॉक्टरों अधिकारियों को दुबारा से काम पर बुलाया जाए. उन्हें फिर से नई जिम्मेदारी सौंपी जाए. आज के हालात में सब को एक साथ मिलकर चलने की जरूरत है.
वकीलों ने गुहार लगाई हमें भी नहीं मिल रही OXYGEN हमारी जान संकट में
दिल्ली हाई कोर्ट में वकीलों ने गुहार लगाई है कि उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल रही है उनके परिवार वाले बिना ऑक्सीजन मर जाएंगे. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा ऐसी परिस्थिति हमने कभी नहीं देखी थी हम बेहद चिंतित हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन के मामले में केंद्र सरकार से सवाल पूछे, दिल्ली हाईकोर्ट ने पूछा कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कम आपूर्ति क्यों हो रही है जबकि महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश को जरूरत से ज्यादा मिल रही है. जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पल्ली ने सुनवाई करते हुए कहा कि दिल्ली को 700 टन ऑक्सीजन की जरूरत है जबकि उसे 480 से 490 टन का ही आवंटन किया गया है. वहीं महाराष्ट्र को जरुरत से ज्यादा दिया जा रहा है. इस पर केंद्र सरकार बताए कि आखिर ऐसा क्यों, महाराष्ट्र में वह कौन सी परिस्थितियां है जिस कारण से कि ऐसा किया जा रहा है.
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