CEC सुनील अरोड़ा का कार्यकाल 12 अप्रैल को खत्म हो रहा है सूत्रों के हवाले से यह जानकारी प्राप्त हुई है कि नए मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में सुशील चंद्रा के नाम को सरकार ने मंजूरी दे दी है सुशील चंद्रा देश के 24वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त होंगे और इनका कार्यकाल 14 मई 2022 तक रहेगा. मालूम हो कि मार्च 2022 से मई 2022 तक पांच राज्यों में चुनाव होने हैं जिसमें यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर शामिल है.
यहां यह बताना जरूरी है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 14 मई 2022 को समाप्त हो जाएगा और यह संयोग ही है कि 14 मई 2022 को ही सुशील चंद्रा का कार्यकाल भी समाप्त होगा.
सुशील चंद्रा फरवरी 2019 से ही तीन सदस्यी चुनाव आयोग में अतिरिक्त चुनाव आयुक्त के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं.
आइए जानते हैं मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कैसे की जाती है
भारत के संविधान का अनुच्छेद 324 कहता है कि भारत में चुनावी प्रक्रियाओं की पूर्ण जिम्मेदारी के लिए एक चुनाव आयोग होगा लेकिन इसमें कितने सदस्य होंगे या फिर इनके वेतन भत्ते के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है. इस कारण भारत में चुनाव आयोग में सदस्यों की संख्या बदलती रही है कभी यह एक सदस्यी रहा तो कभी तीन सदस्यी. 1950 से लेकर 1989 तक आयोग की भूमिका एक सदस्यी रही वहीं 16 अक्टूबर 1989 से राष्ट्रपति द्वारा आयोग की कार्य क्षमता को बढ़ाने और इसके कार्य बोझ को कम करने के लिए इसकी सदस्य संख्या एक से बढ़ाकर तीन कर दी गई, जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं दो अन्य आयुक्त थे मालूम हो कि 1989 में हीं मतदान करने की उम्र सीमा 21 साल से 18 साल कर दी गई थी.
1990 में चुनाव आयोग को अपने पुराने स्वरूप में पुनः वापस लौटा दिया गया और फिर से सदस्यों की संख्या तीन से घटकर एक हो गई लेकिन 1993 में इसके स्वरूप को फिर से तीन सदस्यी बना दिया गया और वर्तमान में इसका स्वरूप तीन सदस्यी ही है.
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले पूर्ण हो, तक होता है.
चुनाव आयोग के मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से हटाने के लिए एक विशेष व्यवस्था है जिसके द्वारा ही उसे हटाया जा सकता है अन्य और किसी साधन से नहीं. मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए उन पर महाभियोग की प्रक्रिया संसद में चलाई जाती है और विशेष बहुमत द्वारा इन्हें हटाया जाता है. मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने के लिए इतनी जटिल प्रक्रिया को इसलिए रखा गया है क्योंकि इससे ये अपने कार्यों को बिना किसी डर और पक्षपात के कर सकें अगर पद से हटाने की प्रक्रिया साधारण होगी तो ये हो सकता है कि आयोग निर्भीक और निडर होकर अपने कार्यों को करने में सक्षम नहीं हो पाएं और हमेशा उन पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहेगा.
चुनाव आयोग के अन्य दो सदस्यों यानी अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया नहीं संचालित की जाती है इन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है.
अब यहां बात आती है कि क्या तीनों आयुक्त और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की शक्तियां समान होती हैं या फिर मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पास ज्यादा शक्तियां होती हैं तो जवाब है तीनों ही निर्वाचन आयुक्तों के पास समान शक्तियां होती हैं और समान अधिकार होते हैं. अगर किसी भी फैसले पर असहमति होती है तो फैसला तीनों सदस्यों के बहुमत के बल पर लिया जाता है. एक बात और भारत का कोई भी व्यक्ति चाहे वह अनपढ़ ही क्यों ना हो वह चुनाव आयोग का सदस्य बन सकता है क्योंकि संविधान में सदस्यों की शैक्षणिक, न्यायिक, प्रशासनिक या विधिक योग्यता के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया.
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