इंडियन प्रीमियर लीग(IPL) को शुरू होने में कुछ ही दिनों का वक्त बचा है. इसी बीच भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने एक बड़ा फैसला लेते हुए आईपीएल के इस संस्करण से सॉफ्ट सिग्नल के नियम को हटाने का फैसला किया है. इसके अलावा अब No Ball और Short Run की गड़बड़ी को भी तीसरे अंपायर द्वारा बदला जा सकता है.
क्या है सॉफ्ट सिग्नल का नियम
मैच में जब किसी कैच को लेकर फील्ड अंपायरों को यह स्पष्ट ना हो कि कैच सही तरीके से लिया गया है या नहीं तो फील्ड अंपायर थर्ड अंपायर से फैसला लेने के लिए बोलता है और यहीं उसे अपना फैसला भी बताना पड़ता है कि उसे क्या लग रहा है. इसे ही सॉफ्ट सिगनल कहते हैं.
फिर इसी के आधार पर तीसरा अंपायर रीप्ले देख कर अपना फैसला देता है. जब तीसरे अंपायर को यह पक्के तौर पर सबूत मिले कि जो फील्ड अंपायर ने सॉफ्ट सिग्नल दिया है वह गलत है तो थर्ड अंपायर का निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाता है.लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि थर्ड अंपायर अनिर्णय की स्थिति में आ जाते हैं क्योंकि बार-बार रीप्ले देखने के बाद भी स्पष्ट नहीं हो पाता है कि लिया गया कैच सही है या नहीं इस समय अंपायर के सॉफ्ट सिग्नल को ही अंतिम निर्णय के रूप में मान लिया जाता है.
लेकिन इससे थर्ड अंपायर के निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है क्योंकि थर्ड अंपायर सॉफ्ट सिस्टम की वजह से स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो पाता. उसे निर्णय देते वक्त सॉफ्ट सिग्नल सिस्टम को भी ध्यान में रखना होता है.
क्या है सॉफ्ट सिग्नल से जुड़ा हालिया विवाद:-
इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए चौथे T20 मैच के 14 ओवर में अच्छा खेल रहे सूर्यकुमार यादव का कैच डेविड मलान ने पकड़ा तो फील्ड अंपायर ने तीसरे अंपायर से फैसला मांगा.वहीं सॉफ्ट सिग्नल में फील्ड अंपायर ने आउट का इशारा भी किया.
रिप्ले देखने पर ऐसा लग रहा था कि गेंद जमीन को छू रही हो. कई बार रीप्ले देखने के बाद तीसरे अंपायर ने स्थिति स्पष्ट ना होने के कारण फील्ड अंपायर के निर्णय को बरकरार रखा.
इस फैसले पर कई पूर्व खिलाड़ियों ने आलोचना की और यहां तक कह दिया कि ICCI को नियम में बदलाव करने की जरूरत है.
कप्तान कोहली का बयान
इसी संदर्भ में कप्तान कोहली ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा की Soft Signal नियम को हटा देना चाहिए. क्योंकि ऐसे फैसले बड़े प्रतियोगिता में मैचों का रुख बदल सकते हैं.
कोहली ने यह भी कहा की फील्ड अंपायर के लिए आई डोंट नो का विकल्प होना चाहिए ताकि तीसरा अंपायर ऐसे मौकों पर फैसला स्वतंत्र रूप से ले सके.