Who is Responsible For Maharashtra Political Crisis Uddhav Or Eknath Shinde:राजनीति में आंख कान से ज्यादा जरूरी है नाक का खुला होना और उद्धव ठाकरे ने तो तीनों को बंद कर रखा था, ऐसे में राजनीतिक और व्यक्तिगत हित साधने वाले लोग जिसमें एकनाथ शिंदे भी शामिल हैं भला कब तक शांत बैठते..
महाराष्ट्र में गहराता राजनीतिक संकट(Maharashtra Political Crisis) जहां राजनीतिक पंडितों के लिए चिंता का विषय है तो वहीं विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के लिए सत्ता पर काबिज होने का बेहतरीन समय. एकनाथ शिंदे(Eknath Shinde) ने एक प्रकार से शिवसेना(Shivsena) को पूरी तरह से हाईजैक कर लिया है. अब कोई चमत्कार ही हो तभी उद्धव ठाकरे शिवसेना के वर्तमान विधायकों को फिर से अपने पाले में कर सकते हैं.
लड़ाई असली और नकली शिवसेना की नहीं है बल्कि लड़ाई इस बात की है कि किस प्रकार बाला साहब ठाकरे(Balasaheb Thackeray Family)) के परिवार को सक्रिय राजनीति से दूर रखा जाए. आज शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे(Shivsena Head) के साथ वही खेल खेला गया है जो कि कुछ महीने पहले बिहार में रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान(Chirag Paswan) के साथ खेला गया था. जहां रातों-रात एक राष्ट्रीय पार्टी के सहयोग से लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया चिराग पासवान को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था और इसके बाद चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए थे और उनके चाचा लोक जनशक्ति पार्टी के सर्वे सर्वा के साथ ही केंद्र में मंत्री पद पर काबिज हो गए.
अगर गौर करें तो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे को सत्ता से दूर करने के लिए इसी पटकथा पर काम किया गया है और अब ऐसा लग रहा है कि इसमें कामयाबी भी महज औपचारिकता भर है. महाराष्ट्र शिवसेना के विधायक और वर्तमान में महाराष्ट्र सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे शिवसेना के कद्दावर नेता हैं लेकिन ठाकरे परिवार हो राजनीति से अलग अलग कर देने जैसा बड़ा फैसला और फिर उसे इतनी आसानी से अंजाम देना ये सभी बातें किसी के भी समझ से परे है कि इसमें किसी और का हाथ नहीं है.
अब यह बात तो किसी से भी छिपी नहीं है कि गुजरात दलबदलूओं का मक्का बन चुका है. ऐसा क्यों है इसे समझने के लिए किसी विशेष अध्ययन की जरूरत नहीं है. लेकिन इन सभी घटनाओं में जो एक बात किसी भी राजनीतिक विश्लेषक को विचलित कर रही है वह है उद्धव ठाकरे द्वारा लिए गए फैसले, जिसमें उद्धव ठाकरे का आनन-फानन में वर्षा(Varsha) छोड़कर मातोश्री(Matoshree Mumbai)) जाना शामिल है.
राजनीति और युद्ध में मुखिया का द्वारा की गई छोटी से छोटी चूक भी समर्थकों के मनोबल को तोड़ने और विरोधियों को लहलहाने के लिए काफी होती है. उद्धव ठाकरे को जैसे ही यह भनक लगी थी कि उनके दल में भीतर खाने कुछ अलग ही पक रहा है तो उन्हें सबसे पहले बिना समय गवाएं विधानसभा सत्र बुलाना चाहिए था और पार्टी की तरफ से व्हिप जारी करना था.
ऐसा करने पर सत्ता विरोधी खेमा में अफरा-तफरी मच जाती और बागी विधायकों को ज्यादा सोच विचार का मौका नहीं मिल पाता. इस प्रकार बातचीत का सिलसिला शुरू हो सकता था. लेकिन उद्धव ठाकरे ने एक राजनीतिक कदम उठाया जिससे उनके विरोधियों को समझने का ही नहीं बल्कि सजने सवरने का भी मौका मिल गया. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अब एकनाथ शिंदे के साथ 50 से भी अधिक शिवसेना के विधायकों का साथ है अगर 37 या इससे अधिक विधायक एकनाथ शिंदे के साथ जाते हैं तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि फिर दल बदलू अधिनियम का भी कोोोईई असर नहीं होगा.